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छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति नाचा को नाट्य शास्त्रीय विधा और शैली से रंगमंच और थियेटर को समृद्ध किया हबीब तनवीर ने

हबीब तनवीर
जन्म 01 सितम्बर 1923 छत्तीसगढ रायपुर।

निधन 8 जून,2009 मध्यप्रदेश भोपाल ।

“मिट्टी,प्रकृति तथा लोक संस्कृति में जीवन को गढ़ने तथा राजनैतिक व सामाजिक ताने बाने को समझने और उसे सहजकर बुनने की कोशिश रंगमंच /थियेटर में करना हबीब तनवीर की तबियत और तासीर दोनो थी। “

थियेटर ही जीवन था। रंगमंच को सीधे सीधे अपनी मिट्टी और जमीन से जोड़ दिया। उसे एक नई पहचान दी।”

छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति नाचा को नाट्य शास्त्रीय विधा और शैली से रंगमंच और थियेटर को समृद्ध किया।

हबीब तनवीर को रंगमंच / थियेटर की बहुत अच्छी समझ व तकनीकी अनुभव था। जीवन के विभिन्न रंगों,सामाजिक व राजनैतिक परिस्थितियों को अपनी लोक संस्कृति और व्यवहारिक जीवनशैली के साथ जोड़कर जीवंत बनाने की अद्भुत कला थी। समाज, सत्ता और राजनीति पर उनकी दृष्टि और सोच बहुत साफ थी। प्रगतिशील जनवादी विचारधार के पक्षधर थे। रूढ़िवादी,पाखंड,धार्मिक प्रपंच और अनैतिक और आदर्शहीन राजनीति के सख्त विरोधी थे।

हबीब तनवीर का यह मानना था कि — “समाज और सत्ता से काटकर किसी भी क्षेत्र को न देखा जा सकता है, न ही समझा जा सकता है ,तब आप नाटक/रंगमंच/थियेटर को उससे कैसे अलग कर सकते हैं ? वह उससे प्रभावित हुए बिना कैसे रह सकता है? इसीलिए वे रंगमंच को सामाजिक,राजनैतिक परिस्थितियों के साथ साथ जीवन मूल्यों को समझने व समझाने का एक सशक्त माध्यम मानते थे । वस्तुत: हबीब थिएटर के साथ रच बस सा गए थे। थिएटर ही उनका जीवन हो गया था।छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति नाचा को नाट्य शास्त्रीय विधा और शैली से रंगमंच और थियेटर को समृद्ध किया।अदभुत विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।

“अपनी मिट्टी,प्रकृति तथा लोक संस्कृति में जीवन को गढ़ने तथा राजनैतिक व सामाजिक ताने बाने को समझने और उसे सहजकर बुनने की कोशिश रंगमंच /थियेटर में करना हबीब तनवीर की तबियत और तासीर दोनो थी। थियेटर ही उनका जीवन था। उन्होंने रंगमंच को सीधे सीधे अपनी मिट्टी और जमीन से जोड़ दिया। उसे एक नई पहचान दी।”

हबीब ने बलराज साहनी, दीना पाठक और मोहन सहगल द्वारा निर्देशित नाटकों में भी काम किया और ‘फुटपाथ’, ‘राही’, ‘चरणदास चोर’, ‘स्टेइंग अन’, ‘गांधी’, ‘ये वो मंजिल तो नहीं’, ‘मैन इटर्स आफ कुमाऊं’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘प्रहर’, ‘द बर्निंग सीजन’, ‘राइजिंग आफ मंगल पांडेय’, ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ जैसी फिल्मों में भी।

हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 01 सितम्बर 1923 को हुआ था। … उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी। उनका पूरा नाम हबीब अहमद खान था, लेकिन कविता लिखनी शुरू की तो अपना तखल्लुस ‘तनवीर’ रख लिया।
चरण दास चोर और आगरा बाजार ये दो नाटक हबीब के पर्याय बन गए थे।

क्लासिक थियेटर को भी अपने गांव और लोक संस्कृति के परिवेश से जोड़कर मिट्टी की सोंधी महक को पुरी दुनिया में फैलाना उसका एहसास कराने की अद्भुत कला थी हबीब तनवीर में जो हबीब को सबसे जुदा और महान बनाती है।

सम्मान,अलंकरण और पुरस्कार —
भारत सरकार ने हबीब को अपने दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण और फ्रांस सरकार ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान ‘ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स’ से सम्मानित किया था. इसके अलावा कला क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कालिदास राष्ट्रीय सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नेशनल रिसर्च प्रोफेसरशिप से नवाजा गया.1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा सदस्य भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक था।

नाटकों की एक समृद्ध सूची –
आगरा बाजार (1954),शतरंज के मोह्रे (1954), लाला शोह्रत् राय (1954),मिट्टि की गाड़ी (1958),गांव के नौ ससुराल, मोर् नओ दामन्द् (1973),चरणदास चोर (1975), उत्तर राम चरित्र (1977),बहादुर कलरिन् (1978),पोङा पंडित (1960) , एक् औरत ह्य्पथिअ तुमको (1980 के दशक) जिस लाहौर नई देख्या (1990),कम्देओ का अपना बसंत ऋतु का सपना (1993),टूटे पुल (1995),जहरीली हवा (2002) एवम राज रक्त् (2006)।

निधन –
रंगमंच को नई सूरत देने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर का (85) साल की उम्र में मध्यप्रदेश की राजधानी।भोपाल में निधन हो गया।

गणेश कछवाहा,रायगढ़ छत्तीसगढ़।
94255 72284
gp.kachhwaha@gmail.com

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