परम पूज्य अघोरेश्वर के अवतरण दिवस 22 सितंबर 2023 पर विशेष

परम पूज्य अघोरेश्वर के अवतरण दिवस 22 सितंबर 2023 पर विशेष-
“विस्तृत लोक को अलौकिक करने वाले शीलवान साधु बिरले ही मिलते हैं।”
मनुष्य ही मनुष्य की जाति है , हमारा धर्म मानवता का निर्वाह करना है,मानवता ही राष्ट्र है।– प. पू. अघोरेश्वर भगवान राम
**गणेश कछवाहा /रायगढ़ *****
अवतरण – एक औघड़ लीक से हटकर –
एक सच्चे साधु- संत के बारे में कुछ लिख पाना बहुत कठिन होता है।वे अलख होते हैं।जब कोई व्यक्ति, संत या महात्मा अपनी संपूर्ण चेतना के साथ जन हित व विश्व कल्याणार्थ सदियों से चल रही परंपरा ,मान्यता या अवधारणा में परिवर्तन कर उसके मूलतत्व को जन जन तक पहुंचाता है तब वही सच्चे अर्थों में युगदृष्टा , युगप्रवर्तक, संत या महात्मा होता है। उनमें से एक युगप्रवर्तक महान औघड़ संत हैं अघोरेश्वर भगवान राम जी।
भारत में साधु, संतों, फकीरों,सूफियों व ऋषी मुनियों की सुदीर्घ व समृद्ध परम्परा है। विस्तृत लोक को अलौकिक करने वाले शीलवान साधु बिरले ही मिलते हैं।20 वीं शताब्दी में एक ऐसे ही सच्चे , पवित्र साधु व युगप्रदर्शक श्री अघोरेश्वर भगवान राम जी का अवतरण भाद्र शुक्ल सप्तमी रविवार संवत् 1994 (12 सितंबर सन 1937)को हुआ।आप अघोराचार्य दत्तात्रेय व बाबा कीनाराम के अवतार माने जाते हैं। आपने अघोर साधना व परम्परा को शमशान से निकालकर तथा पूर्ण नशाबंदी का संकल्प व आव्हान कर इसे समाज , राष्ट्र व विश्व कल्याण के लिए समाज व जन – जन से जोड़ने का अद्भुत युगपरिवर्तन का कार्य किया। इसीलिए आपको” एक औघड़ लीक से हटकर “के विशेषण से विभूषित किया जाता है।
समाज व राष्ट्र की पूजा गढ़े हुए देवताओं की पूजा से भी महान है-
परम पूज्य आघोरेश्वर भगवान राम जी अपने जिज्ञासु शिष्यों को समझाते हुए कहते हैं – “हे ब्रह्मनिष्ठो!राष्ट्र और समाज की पूजा गढ़े हुए देवताओं की पूजा से भी महान है।अरे साधु! समाज की सेवा और उचित जनाकांक्षाओं की पूर्ति से बढ़कर कोई भी अन्य जाप तप, योग, ज्ञान और वैराग्य नहीं है।”
आपने अध्यात्म व धर्म के नाम पर समाज में व्याप्त प्रपंच,पाखंड, आडंबर, कुरीतियों,बुराइयों एवं भ्रांतियों का विरोध करते हुए उसके उन्मूलन व सहज, सरल, सुंदर , स्वस्थ, सुखी, समृद्ध समाज व राष्ट्र निर्माण के लिए पूरी पवित्रता के साथ “अघोर आध्यात्मिक चेतना” के सरल सुगम मार्ग प्रशस्त किया।
आपने सर्वेश्वरी समूह की स्थापना कर सर्वप्रथम समाज से बहिष्कृत कुष्ठ रोगियों की सेवा का संकल्प लिया ।उन्हें आश्रम में रखकर स्वयं अपने हाथों से उनकी सेवा तथा उपचार किया आज भी यह सेवा कार्य जारी है।ग्रीनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में यह अद्भुत सेवा पुनीत कार्य दर्ज किया गया है।आप सिद्धियों के प्रदर्शन व चमत्कार के सख्त खिलाफ थे।
परम पूज्य आघोरेश्वर भगवान राम जी अपने संदेश और आशीर्वचनों में कहते – ” हे साधु! तुम समाज और राष्ट्र के ‘ संबल बनो’ । साधु, समाज या राष्ट्र का भार नहीं,समाज तथा राष्ट्र का उत्तरदायित्व होता है।साधु समाज का पथ प्रदर्शक होता है,समाज सेवक होता है, समाज का शुभ चिंतक होता है।
मनुष्य ही मनुष्य की जाति है , सिर्फ मनुष्य बनें, मानवता ही राष्ट्र है-
आपने समाज को अध्यात्म का ‘अघोर ‘याने जो कठिन न हो बिल्कुल व्यवहारिक और सरल मार्ग बतलाया। आपने यह संदेश दिया कि -“ईश्वर ने कोई जाति,धर्म,समुदाय,भाषा आदि नहीं बनाया है। उसने हमें मनुष्य बना कर मनुष्यता के आचरण निमित्त इस लोक में भेजा है। यथार्थ में हमारी मूल जाति ‘मानव जाति’ है एवं हमारा धर्म “मानवता का निर्वाह करना है” ।
हम इसे जाति – पांती में बंटकर, अपनी इंसानियत से अपनी मानवता से बहुत दूर चले जाते हैं।उन भावनाओं को और विचारों को हमें त्याग ही नहीं करना है ;उसे पूरी तरह से जान और जी लगाकर उखाड़ फेंकना है।हम मनुष्य हैं। मनुष्य की कोई जाति नहीं है।मनुष्य की मनुष्य ही जाति है। सिर्फ मनुष्य बनें; एवं मन, वचन तथा कर्म से मनुष्यता का निर्वाह करें।हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि बनना आसान है;किन्तु सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना कठिन है।इस युग तथा काल की पुकार है- कि हम अपनी मौलिक जाति’ मनुष्य जाति ‘ को भली भांति पहचानें।; एवं सचेत हो कर अपने मौलिक धर्म ‘मानवता’ का निर्वाह करें।”
धर्म में प्रेम, करुणा, दया और सहनशीलता होती है –
अघोरेश्वर भगवान राम धर्म का सहारा लेकर घृणित,विपरीत आचरण व पाखंड के सख्त खिलाफ थे ,वे कहते ,समझाते थे कि -“धर्म में प्रेम, करुणा, दया और सहनशीलता होती है।धर्म की भावना से अनुप्राणित मनुष्य एक-दूसरे के खून का प्यासा नहीं होता। जो ऐसा करता है। वह धर्म से बहुत दूर है।”मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है,जो मानवता और महापुरुषों के गुणों को दे सकता है।धर्म के रास्ते पर चल सकता है और वह धर्म ऐसा होगा , जिसमें कभी खून – खराबा,पारस्परिक लूटपाट और छीन छपट की कोई गुंजाइश ही नहीं होगी।मानवता ही राष्ट्र है।
नहीं तो दुष्प्रज्ञ व्यक्ति ,राष्ट्र और समाज की आंखों में धूल झोंक कर अपकीर्ति एवं कुकृत्य करते हैं और कहते हैं कि यह सब धर्म है।अरे मूर्ख ! तुम्हारे पूर्वजों ने इन कृत्यों को कभी धर्म कहा है? तुम्हारे शास्त्र भी यह नहीं कहते ।
घृणित कर्म,धर्म कैसे हो सकतें हैं? खून – खराबा और पारस्परिक लूटपाट महान पीड़ा , महान दुख की जननी बन गई है। ऐसे कृत्य करने वाले मनुष्य राष्ट्र या समाज के तरुण युवकों को गुमराह कर धर्म और ईश्वर के नाम पर धूल झोंकने वाले सरीखे जान पड़ते हैं रे! मनुष्य मनुष्य में भेद पैदा करते हैं।मनुष्य मनुष्य के साथ, भाई भाई के साथ एक मजहब के अनुयायी दूसरे मजहब के अनुयाइयों के साथ धोखाधड़ी कर खूनखराबा जैसे महाघृणित कृत्य के जन्मदाता बने हुए हैं।
‘ धर्म ऐसा नही होता ।स्वप्न में भी धर्म का रूप ऐसा नही होता।धर्म एक दूसरे के साथ मैत्री कारक होता है।स्नेह कारक होता है।धर्म तो संवेदन शील होता है ।धर्म बट – वृक्ष सा होता है।सभी को छाया प्रदान करने वाला है,चाहे वे किसी भी जाति , मज़हब के क्यों न हों।धर्म, आदर देने वाला, दिलाने वाला होता है।( अघोरेश्वर संवेदन शील से उद्धृत)
अंधविश्वास को भक्ति का आधार न बनाएं –
पूज्य श्री आघोरेश्वर भगवान राम जी समझाते थे कि – ” भारतीय जन अपने गुरुओं और इष्टों के प्रति इतना अंधविश्वास रखते हैं कि अपना विचार खो देते हैं; और उनकी भी बातों को सही रूप में नहीं ग्रहण कर पाते हैं। किसी भी कार्य में आपको उक्ति की आवश्यकता होती है तभी वह सुचारू रूप से संपन्न होगा।यदि आपके पास युक्ति नहीं है सीधे सीधे भक्ति है तो यह लट्ठमार भी हो सकती है। ऐसी भक्ति आपको गुमराह भी कर सकती है। अंधविश्वास को भक्ति का आधार न बनाएं ।धर्म के नाम पर तथा गलत मान्यताओं के कारण,समाज में जो अनेक कुरीतियां फैली हैं,उनका उन्मूलन करो।जन समुदाय को प्रेरणा दो कि वे अंधविश्वास और आडंबर को छोड़कर सरल भाव से धार्मिक एवं सामाजिक कृत्यों का प्रतिपादन करें।
केवल तीर्थाटन से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी –
“बंधुओं ! काशी जाकर गंगा में स्नान करके, या जटा बढ़ाकर या माथा मुढ़ाकर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा एक मृगतृष्णा ही है। तीर्थों में घूम घूमकर देवी देवताओं का पूजन करना यह साबित करता है कि आप परमात्मा के असली स्वरूप को बिल्कुल भूल गए हैं। तीर्थाटन आदि उन्हीं लोगों को शोभा देते हैं, जिन लोगों ने मनुष्य का खून चूसा है। आपके लिए यह सुगम मार्ग नहीं है।आपके लिए तो सुगम मार्ग यही है कि यदि किसी गरीब का बच्चा पढ़ नहीं पा रहा है तो पढ़ने में उसकी मदद करें।यदि किसी गरीब की कन्या की शादी नहीं हो पा रही है तो उसकी शादी में सहायता करें।ईश्वर भी यदि आपको मिल जाए तो वह यह नहीं कहेगा कि आप गंगा के किनारे बैठकर माला जपें, वह भी यही कहेगा कि आप किसी दुखी की सहायता करें,इसी से उसकी सृष्टि का पालन होगा।ऐसा करने से आप पुण्य और आंनद प्राप्त करेंगे जो योगियों को सतत योग साधना से भी संभवतः नहीं प्राप्त होता।”- (आघोरेश्वर की अनुकम्पा से उद्धृत)
पूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु जी ने समाज की निम्न समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया:-
1नारी वर्ग को समाज में उचित सम्मान मिले। 2ढोंगी साधुओं को सही रास्ता दिखाया जाय।
3आध्यात्मिक अंधविश्वास को बढ़ावा न मिले। 4तिलक दहेज की परंपरा को बंद किया जाए।
5मरणोपरांत लेनदेन की क्रिया समाप्त हो। 6ऊंच – नीच, छुआछूत और भेदभाव समाप्त हो।
7उपेक्षितों, अपाहिजों एवं अनाथों को उचित सहायता मिले। 8राजनीतिक नेताओं में सद्बुद्धि हो।
9नवयुवकों का उचित मार्गदर्शन करें। 10छोटे बच्चों में आदर्श संस्कार भरें।
युग प्रवर्तक परम पूज्यश्री अघोरेश्वर भगवान राम जी का अवतरण भाद्र शुक्ल सप्तमी रविवार संवत् 1994 (दिनांक 12 सितंबर सन 1937) को हुआ।
जो समय ,काल और कर्म था उसे पूर्ण कर 29 नवम्बर 1992 को ब्रह्मलीन हो गए।रमता है सो कौन घट घट में विराजत है।
आज 86 वें अवतरणदिवस के पुण्य अवसर पर
परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के श्री चरणों में सादर श्रद्धानत शत शत नमन करते हुए उनकी पवित्र वाणी सर्वजन कल्याणार्थ राष्ट्रहित में सादर समर्पित है।कोटि कोटि नमन।
गणेश कछवाहा
“काशी धाम”
रायगढ़ छत्तीसगढ़
संपर्क 9425572284
gp.kachhwaha@gmail.com




