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ठेठ छत्तीसगढ़ियापन की आवाज थे संत बिसाहूदास महंत(जन्म शताब्दी वर्ष पर विषेश)

ठेठ छत्तीसगढ़ियापन की आवाज थे संत बिसाहूदास महंत
(जन्म शताब्दी वर्ष पर विषेश)
पुष्पांजलि
डॉ फूलदास महंत


वे जाति , धरम से बहुत दूर थे,मनुष्यता को अपने जीवन में धारण कर ,अपने मुल्क छत्तीसगढ़ की आवाज को तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार में लगातार उठाते रहे ।देश में उस समय से लेकर आज तक भी छत्तीसगढ़ का जन मानस शोषित ,दमित और मौन –मूक है।वन आच्छादित,खनिज संपदा से परिपूर्ण, धान का कटोरा कहलाने वाला यह राज्य देश में पिछड़ा हुवा माना जाता है।इसके पीछे कारण है यहां की जनता सरल एवम भोलापन का शिकार है, हर कोई यहां के लोगों को लूट लेना चाहता है,कोई कमी नहीं है यहां के रहवासी छत्तीसगढ़िया भाई बहनों में । यहां के लोग दिन भर खूब मेहनत कर ,खेती बाड़ी के कार्यों में लगे रहते हैं,उन्नत किस्म का अन्न उपजाते हैं फिर भी वे आर्थिक शोषण के कारण गरीब के गरीब ही रह जाते हैं,लोग अपने बेटे बेटियों को अच्छी शिक्षा के लिए बाहर भेज भी नहीं सकते,यह दर्द तब भी था,आज भी है,और कल भी रहेगा।यहां के लोगों को ऊंचे पद पर बैठने नहीं दिया जाता,यहां कि राजनीति यहां के लोगों से नहीं बल्कि दूसरे राज्य के लोगों से संचालित होती है,इस पीड़ा को यहां का हर आदमी जानता है पर कर कुछ नही सकता।
बिसाहूदास महंत छत्तीसगढ़ के आन,मान ,शान थे,। कबिराना एवं गांधी वादी दर्शन से प्रभावित यहां की जनता ने उन्हें राजनीति में आने के लिए विवश कर दिया,और वे देश सेवा से बढ़कर मानव सेवा की भावना से मध्य प्रदेश की राजनीति में उतरे और लगातार1952से1977तक लगातार 6.6पंचवर्षीय चुनाव जीतते रहे,यहां तक कि एक बार अस्वस्थता के कारण वे घर पर ही बिस्तर में पड़े रहे लेकिन यहां की जनता ने उन्हे ,उनका नाम सुनकर ही वोट दिया और वे प्रचंड वोट से जीते भी।
आज यह सब बातें इतिहास बन गई है।जो भी छत्तीसगढ़ से भोपाल उनके पास जाता ,वे बराबर उनका खयाल रखते,आने जाने ,खाने और रहने का प्रबंध से लेकर उनकी समस्याओं का तुरंत निदान कर बाबू बिसाहूदास जी उन्हें वापस छत्तीसगढ़ भेजते, ऐसे लोग अब कहां मिलते हैं।आज उनके जन्म को 100वर्ष पूरा होंरहा है।ठेठ छत्तीसगढ़िया पन उनके चाल,चलन ,आवाज,बोल चाल, पहनावा सभी में रचा बसा था। मेरा जन्म स्थली पाली पुलाली कला के गुंजननाला पुल का लोकार्पण करने जब वे पहुंचे तब मैं कक्षा 5वी का विद्यार्थी था,धोती कुर्ता जैकेट खादी पोशाक में वे लगभग 50गाड़ियों के बीच से उतरे,लोगों की भीड़ उस माटी पुत्र को देखने उमड़ पड़े थे। उस समय वे 3.4विभाग के मंत्री के साथ ही लोकनिर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री भी थे।सच मायने में वे संत थे,अपनी माटी,अपनी धरती ,अपने मुल्क के लोगों से उन्हे प्यार था,प्यार किसी जाति, धरम ,संप्रदाय का नहीं बल्कि कबीर और गांधी की तरह मनुष्यता का ,अहिंसा का,सत्य का,न्याय का,शोषित लोगों की सेवा का,छत्तीसगढ़ का विकास का,और इस सेवा में उन्होंने अपना जीवन ही होम कर दिया।
आज उनकी सेवा का,समर्पण का, त्याग और बलिदान का , स्वप्न का छत्तीसगढ़ साकार रूप ले चुका है , ऐसे में उन्हें उनके जन्म शताब्दी वर्ष में फर्ज बनता है,छत्तीसगढ़ की माटी में जन्में , जनमानस का,युवाओं का , यहां के बेटे बेटियों का , वह इसलिए भी कि यहां की संस्कृति यहां की रीति नीति , मया दया प्रेम की भावना एक दूसरे के प्रति और खासकर अपने माटी पुत्रों को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे सकें,यह हमारा दायित्व भी है और कर्तव्य भी।
मनुष्य अपने कर्मो से महान बनता है,मनुष्य की पहचान उसके कपड़ों से नही बल्कि चरित्र और कर्तव्यों से बनता है।जिस आत्मनिर्भरता की शुरुवात महात्मा गांधी जी ने स्वतंत्रता पूर्व किया था उसी से प्रभावित होकर अपने विद्यार्थी जीवन से ही सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपना जीवन का लक्ष्य बनाकर बाबू जी ने सेवा और शिक्षा के लिए नागपुर विश्वविद्यालय जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने चांपा , सारागांव से सेवा की शुरुवात की।स्कूल में शिक्षक बनकर उन्होंने छत्तीसगढ़ के क्षेत्र के लोगों को संस्कारित शिक्षा दी ,।कुछ ही समय में यहां के लोगों ने उन्हें राजनीति में आने के लिए पैरवी करने लग गए , न चाहते हुवे भी उन्होंने जनता सेवा की भावना को मनुष्यता के लिए बड़ी सेवा मानकर राजनीति में आना स्वीकार किया।आज बांगो डेम जो बाबू जी की कल्पना थी जिसका साकार रूप हम देख रहे हैं,आपसी युक्त खेतों को पानी,तथा बांगों परियोजना से ही बिजली,ऊर्जा की प्राप्ति छत्तीसगढ़ के लोगों को हो रही है। उन्होंने चांपा को कोसा, कांसा और कंचन की नगरी के रूप में सुबिख्यात करा दिया, छत्तीसगढ़ से कोसा कपड़ा विदेशों को आज निर्यात किए जाते हैं,आज देश विदेश में छत्तीसगढ़ का पहचान होने तो लगा है किंतु आज भी छत्तीसगढ़ का संचालन यहां के लोगों से नहीं,बल्कि बाहरी लोगों से हो रही है ,यह गंभीर चिंतनीय है,इसका हल एक ही है कि जो लोग यहां की माटी में जन्म लिए हैं उसकी कर्ज उन्हें निभाना चाहिए,यही एक समय है कि भाईचारा एकता,समन्वय, और प्रेम की भावना से हम छत्तीस गढ़िया लोग यहां की रीति नीति सरलता और एक दूसरे को आपसी सहयोग की भावना से अपने ईमान से,इंसानियत ,मानवता को आगे बढ़ाएं,कबीर और महात्मा गांधी की दृष्टि को अपने जीवन का ध्येय बनाय तथा,जाति धरम ,संप्रदाय की भावना का त्याग कर छत्तीसगढ़िया पन की भावना को आगे लाएं हम कुछ ही समय में देखेंगे कि “छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया”के नारा को हम पूरे भारत में, राष्ट्र में स्थापित कर सकेंगे,अपनी माटी और भाषा kr प्रति हम प्रेम कर सकेंगे,अपनी भावना को एक दूसरे के पास अपनी भाषा में रख सकेंगेlइसके लिए बहुत जरूरी है हम अपने पूर्वजोंअपने माटी के मसीहा लोगों को याद करते चले,उन्हे हृदय से श्रद्धांजलि दें पुष्पांजलि दें।
बाबूजी के जीवन शैली पर आधारित कुछ पंक्तियां..
“जब जीवन दिया है
वो भी अदद चार दिन
मत मिटने दो तुम
अपनी ही छाप
समेट लो सारे दर्द
भर दो खुशियों के रंग
छत्तीसगढ़ में।”

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